जैविक खेती की जानकारी /organic farming

जैविक खेती की जानकारी /organic farming

जैविक खेती की जानकारी /organic farming

दोस्तों वर्तमान समय में जैवक खेती एवं जैव उत्पाद का महत्व इसलिए बढ़ गया है क्योंकि आप ओर हम सभी जानते है वर्ष 2020 में करोना बीमारी का प्रकोप बढ़ गया और इसे महामारी घोषित कर दिया गया है । इसमे एक बात स्पष्ट तौर पर उभर कर आई कि जिन व्यक्तियों में प्रतिरोधक क्षमता कम है उनमें करोना बीमारी के साथ अन्य बीमारियों के होने की सम्भावना ज्यादा है। हम  सोचते है कि हम तो सभी अच्छी चीजें खा रहे है फिर हमारी प्रतिरोधक क्षमता कम क्यूँ है? इस सवाल के कई कारण हो सकते है जैसे हरित क्रांति के बाद उर्वरक, कीटनाशकों,खरपतवारनाशकों के अत्यधिक प्रयोग से मिट्टी जहरीली हो रही है,साथ ही साथ पोषक तत्वों कि कमी हो रही है, मिट्टी कि ऊपरी सतह कड़ी हो रही है, किसान के मित्र कहे जाने वाले जीव केंचुआ -शिकारी कीट-सूक्ष्म जीव नष्ट हो रहे है । हम यह समझ सकते है जो मिट्टी जहरीली,बेकार, या अनुपजाऊ हो रही है वह आपको शुद्ध-पोष्टिक-रसायन मुक्त उत्पाद कैसे दे सकती है।हम यह भी देखते है कि डेयरी उत्पाद,कुक्कुट उत्पाद मे भी रसायन कि मात्रा पाई जाती है जो हमारी रोगप्रतिरोधक क्षमता को कम करते है। इसलिए गुणवत्तापूर्ण फसल उत्पादन लेने के लिए  जैविक खेती की जानकारी /organic farming विषय पर नजर डालेंगे।

जैविक खेती क्या है?

खेती की वह पद्धति (method)जिसमें फसल चक्र, फसल अवशेष, गोबर की खाद, हरी खाद,यांत्रिक खेती एवं जैविक कीटनाशकों का प्रयोग कर शुद्ध-पोष्टिक-रसायन मुक्त उत्पाद प्राप्त करना और साथ ही मिट्टी की उत्पादकता तथा उर्वरता को लंबे समय तक बना कर रखना जैविक खेती कहलाती है।

जैविक खेती की विधियाँ : –

1. बीज उपचार ट्राइकोडर्मा से या गौ मूत्र से करना चाहिए।

2. पोषण प्रबंधन – 

  • भूमि के बायोमास को बढ़ाने के लिए हरी खाद (ढेंच एवं सनई )का उपयोग करना चाहिए।
  • केचुआ खाद @3टन प्रति हेक्टर का प्रयोग करना चाहिए।
  • गोबर की खाद@4-5टन प्रति हेक्टर का प्रयोग करना चाहिए।
  • बायो गैस स्लरी (biogas slurry) का उपयोग खाद के रूप में करना चाहिए।
  • जैव उर्वरक (biofertilizers) राइज़ोबियम, ऐजटोबेक्टर, पी एस बी का प्रयोग अवश्य करना चाहिए क्योंकि जैव उर्वरक सस्ती आदान सामाग्री के रूप में भी देखा जाता है जो पोषक तत्वों को पौधों को उपलब्ध कराने में अहम भूमिका निभाते है।
  • फसल चक्र में दलहनी फसलों को लेना सुनिश्चित किया जाना चाहिए एवं एक निश्चित फसल चक्र को जब हम बार बार दोहराते है तो खरपतवार एवं कीट का प्रकोप बढ़ जाता है इसलिए फसल चक्र में परिवर्तन करने से इनका नियंत्रण होने लगता है।
  • फसल अवशेषों को न जलाए बल्कि उन्हें मिट्टी में दबा जिया जाए ताकि अगली फसल के लिए खाद का काम करे।

3. खरपतवार नियंत्रण –

  • गहरी जुताई करना चाहिए ताकि अधिक तापमान में ताने,जड़, प्रकन्द (rhizome),बल्ब (bulb) नष्ट हो जाते है।
  • मज़दूरों से निदाई (hand weeding ) करवाना चाहिए ।
  • कतार से कतार के बीच के खाली स्थान  को पत्तियों से, पुआल से ढक देना चाहिए।
  • निदाई के लिए साफ कृषि यंत्रो का उपयोग करना चाहिए।

4. कीट नियंत्रण –

  • गहरी जुताई करनी चाहिए ताकि मिट्टी में दबे हुये प्युपा /शंखी ,लार्वा , अंडे ऊपर आ जाते है और तेज धूप पड़ने पर नष्ट हो जाते है ।
  • लाइट ट्रेप का प्रयोग करना चाहिए ।
  • फेरोमोन ट्रेप का प्रयोग करना चाहिए।
  • ट्रेप क्रॉप लगाना चाहिए।

दोस्तों इस तरह की प्रबंधन तकनीक अपनाने से हम शुद्ध एवं रसायन मुक्त उत्पाद या फसल प्राप्त कर सकते है। इस उत्पाद को बाज़ार में बेचने के लिए हमे प्रमाणीकरण की जरूरत होती है। आइये इसे आगे समझते है: –

जैव प्रमाणीकरण क्या है? उत्पादन प्रक्रिया का जैविक मानको के आधार पर निरीक्षण करने के बाद सत्यापन प्रस्तुत करना।

जैव प्रमाणीकरण (organic certification) क्यूँ किया जाता है: – उपभोक्ता को शुद्ध-पोष्टिक-रसायन मुक्त उत्पाददेने के लिए तथा धोकाधड़ी से बचाने के लिए ओर गुणवत्ता की गारंटी देने के लिए जैव प्रमाणीकरण किया जाता है।

जैविक उत्पाद मानक क्या-क्या है: –

  • हमेशा बोनी के लिए जैविक बीज का ही उपयोग करे। जैविक बीज कृषि विज्ञान केंद्र,कृषि विश्वविद्यालय या जैविक किसान से ही ले। हाइब्रिड बीज एवं जी एम (GM) बीज का प्रयोग प्रतिबंधित होता है।
  • सभी कृषि आदान (खाद )जैविक होने चाहिए । इसलिए इन्हे खेत पर ही बनाना बेहतर होता है।
  • संदूषण (contamination) से बचने के लिए बफर ज़ोन बनाएँ। (खेत के किनारे -किनारे 2-3 फुट ऊंचे पौधे  जैसे करोंदा, सूरजमुखी लगाएं जो फसल को संदूषण से बचाता है )
  • सिंचाई के लिए स्वयं का नलकूप या कुंआ होना चाहिए। नदी, नहर के पानी से सिंचाई ना करें ।
  • कटाई या गहाई के लिए स्वयं के यंत्रो का उपयोग करना चाहिए। यदि बाहर के यंत्रो का उपयोग कर रहे है तो यंत्रो की अच्छे से सफाई करने के बाद ही उपयोग में लाना चाहिए।
  • जैविक उत्पाद के लिए अलग से भंडारण की व्यवस्था होनी चाहिए।

परंपरागत कृषि विकास योजना (PKVY)- जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए केंद्र सरकार द्वारा PKVY योजना संचालित की जा रही है। जैव प्रमाणीकरण प्राप्त  करने के लिए एवं पीजीएस इंडिया पोर्टल में पंजीकरण करने के लिए ब्लॉक स्तर पर ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी ,ब्लॉक टेक्नोलाजी मेनेजर (आत्मा ) एवं सहा॰ टेक्नोलाजी मेनेजर (आत्मा ) से सम्पर्क करना होगा।

दस्तावेज़ – आधार कार्ड, पेन कार्ड , बैंक पास बुक की कॉपी , b1 खसरा नकल ,email id नजरी नक्सा  आदि दस्तावेज़ की आवश्यकता होगी।

पी जी एस इंडिया (PGS india) के तहत  जैव प्रमाणीकरण का प्रावधान निम्नानुसार  है : –

एकल- इसमे एक  किसान के रकबा का  प्रमाणीकरण किया जाता है।

समूह – एक छोटे समूह में रकबा का प्रमाणीकरण किया जाता है जिसमे  कम से कम 5 किसानो का एक समूह बना हो।

एल ए सी (Large Area Certification) – एलएसी  के अंतर्गत पूरे गाँव को प्रमाणीकृत किया जाता है।

प्रोसेसर एंड हेंडलर्स – जैव उत्पाद को प्रोसेसिंग के बाद  बाज़ार में बेचने के लिए भी प्रमाणीकरण का प्रावधान है।

दोस्तों जैविक खेती के महत्व को समझते हुए जैविक खेती की जानकारी /organic farming ब्लॉग में महत्वपूर्ण  बिन्दुओं को आप तक पहुचानें  की कोशिश की है , आप जैविक खेती की शुरुआत छोटे रकबे से कर सकते है और जैविक खेती की तरफ बढ़ते हुये आपके कदम सराहनीय और स्वागतयोग्य है। ॥ धन्यवाद ॥

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