कृषि में सीमित संसाधनो से अधिक फसल उत्पादन कैसे प्राप्त करें?

कृषि में सीमित संसाधनो से अधिक फसल उत्पादन कैसे प्राप्त करें?

कृषि में सीमित संसाधनो से अधिक फसल उत्पादन कैसे प्राप्त करें?
      मिश्रित खेती (मक्का+चौलाई )

 

वर्तमान समय में जनसंख्या वृद्धि के साथ अधिक फसल  उत्पादन का दबाव बढ़ता ही जा रहा है।देश के बड़े हिस्से में कृषकों द्वारा नई कृषि तकनीकी का प्रयोग कर अधिक फसल उत्पादन प्राप्त किया गया  है, किन्तु आज भी बहुत से आदिवासी बाहुल क्षेत्रो में परंपरागत खेती ही की जाती है जिसके कारण अधिक श्रम के बावजूद फसल उत्पादन मे वृद्धि  नहीं कर पाते  है।

निम्नलिखित घटक परंपरागत कृषि को दर्शाते है :-

  1. मृदा प्रबंधन नहीं करना :-हरी खाद ,कम्पोस्ट उचित फसल चक्र का प्रयोग नहीं करने से मृदा मे पोषक तत्वों की कमी हो जाती है एवं फसल अवशेष /नरवाई को खेतो में ही जला देने से मृदा सख्त हो जाती है।
  2. बीज उपचारित नहीं करना :- बोनी के पहले बीज उपचारित नहीं करने के कारण बीज जनित एवं मृदा जनित रोगों का प्रकोप बढ़ता है और फसल उत्पादन मे कमी आती है ।
  3. छिटका विधि  से  बोनी करना :- इस  विधि से बोनी करने के कारण बीज दर मे वृद्धि होती हाती है  और फसल उत्पादन व्यय मे बढ़ोतरी होती है ।
  4. सिंचाई  साधनों की कमी:-  नलकूप ,कुआ जैसे सिंचाई साधनों की उपलब्धता नहीं होने के कारण या निम्न भू जल स्तर  होने की दशा में असिंचित/ अर्धसिंचित खेती की जाती है जिससे फसल उत्पादन प्रभावित होता है।
  5. आर्थिक स्तर कमजोर होने के कारण यूरिया के अलावा अन्य उर्वरक, खरपतवारनाशकों ,कीटनाशकों का प्रयोग नहीं किया जाता है। कीट एवं रोग बढ़ने से फसल  मे क्षति  देखी जाती है ।

कृषि मे सीमित संसाधनो से अधिक फसल उत्पादन निम्न तरीकों से कर सकते है :

  1. घर मे उपलब्ध पशुधन से प्राप्त गोबर से खाद बनाकर उसका उपयोग खेतो मे अवश्य करना चाहिए। पूर्ण रूप से पकी हुई गोबर की खाद मृदा को भुरभुरा बनाने मे सहायक होती है, साथ ही साथ मृदा मे पोषक  तत्वों को बढ़ाती  है। नरवाई न जलाए ,इसे मिट्टी मे दबा दे जिससे आगामी फसल के लिए यह खाद के रूप मे परिवर्तित हो जाएगी।
  2. बीज जनित एवं मृदा जनित रोगों से बचाव हेतु थायरम 2.5 ग्राम प्रति किलो बीज, कार्बेण्डाजीम 2 ग्राम प्रति किलो बीज, ट्राइकोडर्मा 5ग्राम प्रति किलो बीज की दर से बीज उपचारित करना चाहिए ताकि रोग व्याधि से होने वाली क्षति को रोका जा सके।
  3. राइज़ोबियम /एजेटोबेक्टर 5ग्राम प्रति किलो बीज, पी एस बी  5ग्राम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करने से नाइट्रोजन फिक्सिंग बेक्टीरिया की बढ़ोतरी होती है जिससे फसल मे यूरिया की मांग मे कमी आती है। पी एस बी कल्चर से उपचारित करने पर बेक्टीरीय भूमि मे उपस्थित अनुपलब्ध फास्फोरस को पौधो को उपलब्ध करने मे सहायक होते है ,इसलिए उर्वरक प्रयोग नहीं करने की दशा मे कल्चर का उपयोग अवश्य करना चाहिए ।
  4. छिटका विधि की अपेक्षा नारी प्लाऊ से कतार बोनी करना चाहिए।
  5. अर्धसिंचित एवं आसिंचित /पलेवा खेती मे APSA -80 का उपयोग एक लाभकारी कदम हो सकता है जो मिट्टी की जल शोषण क्षमता एवं जल धरण क्षमता को बड़ाता है। पलेवा खेती मे APSA -80 मिट्टी में नमी ज्यादा दिनों तक बना कर रखता है ,साथ ही बीजो की अंकुरण क्षमता बड़ाने मे भी सहायक होता है ।

APSA -80 :- यह एक जैविक कृषि उत्पाद है ,जो सहायक की तरह काम करता है ,इसे पानी मे मिला कर मृदा उपचारित करने से मिट्टी भुरभुरी होती ही जिससे पानी सोखने की क्षमता बढ़ती है ,मिट्टी मे उपलब्ध पोषक तत्वों की सक्रियता को बढ़ाता है ,फंगीसाइड, कल्चर के साथ मिला कर उपचारित करने से इनकी प्रभावशीलता बढ़ती है ,इसी तरह कीटनाशक, खरपतवारनाशी रसायनो के साथ मिलकर छिड़काव करने से रसायनो की प्रभावशीलता मे वृद्धि होती है, कृषि यंत्रो मे जंग नहीं लगने देता है ।

दोस्तों कृषि में सीमित संसाधनो से अधिक फसल उत्पादन कैसे प्राप्त करें? , ब्लॉग में दी जानकारी से हम सीख सकते है कि कम संसाधनों की उपलब्धता मे भी कम लागत कृषि तकनीक का उपयोग कर फसल उत्पादन मे वृद्धि कर हम अपनी आय मे भी वृद्धि  कर सकते है ।

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